हिन्दी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की दोस्ती जगजाहिर थी। दोनों हमेशा एक-दूसरे से संपर्क में रहते थे। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद, अमिताभ उन लोगों में से एक थे, जिन पर राजीव को सबसे अधिक भरोसा था और वही अमिताभ को राजनीति की दुनिया में भी लेकर आए।
इस तरह उनके कहने पर अमिताभ 1984 में इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुए और यूपी के सीएम रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा कर लोकसभा पहुँचे।
लेकिन, अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने अपना कार्यकाल पूरा किए बिना ही, 3 वर्षों में राजनीति की दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके बावजूद अमिताभ और राजीव के बीच दोस्ती बरकरार रही।
1991 में, जब राजीव गाँधी की हत्या हुई, उस वक्त अमिताभ लंदन में थे। इस खबर को सुनने के बाद उन्हें गहरा धक्का लगा और तुरंत दिल्ली पहुँच कर प्रियंका गाँधी के साथ अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाई।
इस घटना के एक साल बाद, जब चुनाव हुए तो कांग्रेस अमिताभ को फिर से बुलाना चाहती थी। क्योंकि, वह सोनिया गांधी को भी अच्छे से समझते थे।
लेकिन, अमिताभ ने मना करते हुए कहा कि वह जो भी जिम्मेदारी लेते हुए, उसको पूरी तरह से जीते हैं और हर कीमत पर उसे पूरा करने की कोशिश करते हुए। राजीव उनके अच्छे दोस्त थे और वह सोनिया के शुभचिंतक हैं। लेकिन, राजनीति में आने से उनका दुख कैसे कम होगा?
वह खुद मजबूत और समझदार हैं। उन्होंने अच्छे से पता है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं।
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