प्रकृति के निरंतर बदलते व्यवहार के कारण आज समस्त मानव जाति पर संकट के बादल छाए हुए हैं। प्रकृति पर हमारी निर्भरता इतनी अधिक है कि यदि हमने इसके संरक्षण के लिए अभी से सार्थक कदम नहीं उठाए, तो हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

ऐसा नहीं है कि हमारी सरकारें और नागरिक समाज जलवायु परिवर्तन से उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह उदासीन हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

इस कड़ी में ऐसा ही एक नाम है, सुहावन राठौर का। सुहावन का मानना है कि प्रकृति की रक्षा और इसके संसाधनों का समाज के हित के लिए विवेकपूर्ण ढंग से हो, इसके लिए हमें एक बेहतर समन्वय के साथ कार्य करना होगा।

मूल रूप से बिहार (Bihar) के जमुई जिले के रहने वाले सुहावन, बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय से डेवलेपमेंट में पोस्ट-ग्रेजुएशन करने के बाद भुवनेश्वर में ई-कुटिर में नाम की एक कंपनी में बतौर इनोवेशन ऑफिसर कार्यरत थे। 

इसी दौरान उन्हें स्वीडन की एक कंपनी में हेल्थ मैनेजर की नौकरी का प्रस्ताव मिला, लेकिन सुहावन का इरादा जिस मिट्टी में वह पले-बढ़े, उसी के लिए कुछ करने का था और उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। फिर, उन्होंने ई-कुटीर में भी नौकरी छोड़ी और बिहार (Bihar) के कृषि मंत्रालय में बतौर सलाहकार काम करने लगे। 

इसके बाद सुहावन अपने गृह जिले यानी जमुई के अति पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ने की दिशा में कार्य करने लगे। फिलहाल, वह बिहार में पर्यावरण संरक्षण और स्थायी विकास के मुद्दे को लेकर कई तरह के अभियान चला रहे हैं, लेकिन इसमें प्रोजेक्ट ग्रीन अम्ब्रेला सबसे खास है। इस प्रोजेक्ट तहत सुहावन पटना की छतों को हरा-भरा कर रहे हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत अगस्त, 2019 में की थी। 

द बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान सुहावन प्रोजेक्ट ग्रीन अम्ब्रेला के बारे में बताते हैं, “आज हमारे देश के तमाम छोटे-बड़े शहर, प्रदूषण की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। इसके साथ ही, हरित आवरण क्षेत्र की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरों का तापमान भी ज्यादा होता है। हम विज्ञान की भाषा में इसे “अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट” कहते हैं। “

इस भीषण समस्या से निजात दिलाने के लिए सुहावन ने अपनी ग्रीन सेवर एंड वेलफेयर संस्था के स्वयंसेवियों की सहायत से “प्रोजेक्ट ग्रीन अम्ब्रेला” की पहल की है। इस योजना के पहले चरण में, पटना के सरकारी भवनों की छतों को हरा-भरा करने का लक्ष्य है और इसकी शुरुआत उन्होंने एनएन कॉलेज से की। जबकि, अगले चरण में निजी अपार्टमेंट में इस योजना को कार्यांवित किया जाएगा। 

बकौल सुहावन, योजना की प्रक्रिया के तहत सबसे पहले छत पर एक प्लास्टिक बिछा कर, उस पर बालू की एक परत बिछाई जाती है। इसके बाद, एक बाक्सनुमा प्लास्टिक में मिट्टी और जैविक खाद डाल कर इसके 40 प्रतिशत हिस्से में प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपयुक्त पौधे और शेष 60 प्रतिशत भाग में जैविक साग और सब्जियां लगाई जाती है। इस प्रक्रिया में जल संरक्षण को भी विशेष ध्यान में रखते हुए ड्रिप इरिगेशन को शामिल किया गया है।

सुहावन कहते हैं, “प्रोजेक्ट ग्रीन अम्ब्रेला को बड़े पैमाने पर लागू करने के बाद, शहर के तापमान 3-4 डिग्री सैल्सियस तक कम किया जा सकता है। जिससे आपको कूलर, एसी का इस्तेमाल कम करने के साथ-साथ शहर के हरित आवरण क्षेत्र में भी बढ़ोत्तरी होगी। इसके फलस्वरूप, ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों और प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के साथ-साथ बिजली की भी बचत करने में मदद मिलेगी।”

वे आगे कहते हैं, “शेष 40 प्रतिशत हिस्से में जैविक खेती के रूप में उगाए गए साग-सब्जियों के सेवन से आपको रसायन रहित आहार भी मिलता है, जिससे कई खतरनाक बिमारियों से बचा जा सकता है। यह तकनीक इतनी किफायती है कि आप इसका खर्च अपनी छतों पर उगाए साग-सब्जियों को बेचकर निकाल सकते हैं, इसके लिए आपको कुछ भी अतिरिक्त खर्च करने की जरूरत नहीं है।”

प्रोजेक्ट ग्रीन अम्ब्रेला को लेकर एएन कॉलेज के दर्शन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ। शैलेश कहते हैं, “पटना दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। ऐसे में, इस तरह की पहल शहर को स्वच्छ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। शुरू में हमें लगा कि छत पर मिट्टी भरने से कहीं रिसाव ना हो जाएं। लेकिन, यह काफी उन्नत विधि है। इसके तहत सभी सरकारी भवनों पर पेड़-पौधे लगाए जाने चाहिए, इससे बेकार पड़े जगहों का सदुपयोग होगा।”

इसके अलावा सुहावन, बिहार (Bihar) के किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए देसला नेचुरल एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के तहत प्राकृतिक खेती की एक योजना पर भी कार्य कर रहे हैं। यह कृषि पद्धति देशी गायों के अपशिष्टों पर आधारित है। इसके जरिए वह जीरो बजट पर खाद्द का निर्माण कर रहे हैं। इसके उपयोग से भूमि की उर्वरकता बढ़ती है। साथ ही, किसानों की आय में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। 

सुहावन इस विषय में बताते हैं, “वह इस योजना पर बिहार (Bihar) के कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और इसके जरिए हम किसानों को एक समग्र मार्केट प्लेस उपलब्ध कराते हैं। वर्तमान समय में इस योजना से 5 हजार से अधिक किसान जुड़े हुए हैं और वर्ष 2022 तक इससे 50 हजार से अधिक किसानों को जोड़ने का हमारा लक्ष्य है।”

इससे जुड़े किसान नंदलाल कहते हैं, “वे लगभग 5 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, इसमें रसायनिक विधि से खेती की तुलना में काफी कम लागत आती है। जिस वह से उन्हें प्रति वर्ष लगभग एक लाख रुपए की अधिक कमाई हो रही है। हमारे उत्पादों को नेपाल तक भेजा रहा है।”

Bihar

कृषि, पर्यावरण, समाज सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिहार लीडरशिप अवार्ड (Bihar Leadership Award) , बिहार एक्सीलेंसी अवार्ड (Bihar Excellency Award), राष्ट्रीय गौरव सम्मान जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित सुहावन, सार्क यूथ एसोसिएशन के भारत के निदेशक भी हैं और इसके अलावा उन्हें वर्ष 2018 में कॉमनवेल्थ यूथ फोरम, लंदन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी आमंत्रित किया गया था।

अपने इस यात्रा के बारे में सुहावन कहते हैं, “शुरुआती दिनों में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि, उन्हें मुम्बई स्थित एक मरीन इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया था, लेकिन वे बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ दी, जिसके बाद परिवार वाले काफी नाराज भी हुए।“

इस कड़ी में सुहावन आगे बताते हैं, “जब वह महज सातवीं कक्षा में थे तो उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर, ग्रीन सेवर एंड वेलफेयर नाम से एक ग्रुप बनाया और इंजीनियरिंग छोड़ने के बाद इन्होंने साल 2010 में इसे बिहार सरकार द्वारा पंजीकृत करा लिया। इस संस्था का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और समाज से जुड़े मुद्दों पर युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना है।”

आज यह संस्था बिहार (Bihar) के 30 जिलों के साथ-साथ झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी कार्य कर रही है। वर्तमान समय में इससे लगभग दो हजार लोग जुड़े हुए हैं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 50 हजार लोग लाभांवित हो रहे हैं। 

बतौर सुहावन, आज हमारे सामने पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक संबंधी कई समस्याएं हैं। इससे निजात पाने के लिए सरकारों द्वारा कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन सूचनाओं के अभाव के कारण ये योजनाएं जरूरतमंदों तक पहुँच नहीं पाती हैं। 

यदि हमें एक विकासशील देश से विकसित देशों के श्रेणी में शामिल होना है, तो हमें इस समस्या से जल्द निपटना होगा और ये जिम्मेदारी देश के युवाओं को उठानी होगी। हमें उठानी होगी। मैं इसी संकल्प के साथ आगे बढ़ा हूँ।

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