अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से बिहार के एक छोटे शहर से निकलकर हिन्दी सिनेमा जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) आज अपना 52वां जन्मदिन मना रहे हैं। 

मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने अपनी जिंदगी में कई कठिनाइयों को झेला है, लेकिन उन्होंने कभी अपने सपनों को नहीं छोड़ा। 

मनोज ने हिन्दी सिनेमा में एक बार अपनी जगह बना लेने के बाद, कई ऐसे लोगों की भी मदद की, जो फिल्म इंडस्ट्री में जगह तो बनाना चाहते थे, लेकिन कोई मदद न मिल पाने के कारण उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

ऐसा ही एक नाम है पंकज त्रिपाठी का। दरअसल, यह कहानी गैंग्स ऑफ वासेपुर के शूटिंग के दौरान की है। शूटिंग के दौरान मनोज पटना के एक होटल में रुके थे और उस दौरान पंकज त्रिपाठी उस होटल के किचन सुपरवाइजर थे।

पंकज त्रिपाठी ने उनके मेहमानबाजी में कोई कमी नहीं रहने दी। लेकिन, जब मनोज होटल से बाहर निकले तो वह अपनी चप्पल वहीं भूल गए। इसकी जानकारी जब पंकज को हुई, तो उन्होंने उस चप्पल को ले लिया और कहा कि वह उन्हें फिल्म का रास्ता दिखाएगा।

इसके कुछ समय बाद पंकज त्रिपाठी ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

कुछ ऐसी ही कहानी मनोज बाजपेयी की भी थी। वह फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए 17 साल की उम्र में दिल्ली चले गए थे और चार बार आवेदन करने के बाद भी उनका दाखिला नहीं हो पाया।

इसके बाद, उन्होंने थिएटर में काम करना शुरू कर दिया और उनकी स्क्रीन डेब्यू 1994 में शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ से हुई। फिल्म में उनका किरदार काफी छोटा था, लेकिन आगे सत्या, शूल, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्मों ने उन्हें एक नई पहचान दी।

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