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राजस्थान: मरीजों को न हो कोई दिक्कत, इसलिए अपनी जिंदगी को भी दांव पर लगा रहा यह फार्मासिस्ट

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आज कोरोना वैश्विक महामारी के कारण पूरी मानव जाति पर संकट के बादल छाए हुए हैं। इस खतरनाक वायरस की रोकथाम के लिए पूरी दुनिया में कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकारों ने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉकडाउन भी लगाए, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, जो स्वाभाविक भी है।

विपदा की इस घड़ी में, इंसानी जज्बातों से भरी कुछ कहानियाँ भी हमें सुनने के लिए मिल रही है, जो हमारे लिए इंसानियत पर विश्वास को कायम कर इन निराशाओं के बीच एक नई उम्मीद जगा रहे हैं। कोरोना संकट के इस दौर में किसी ने बेघर को खाना खिलाया तो किसी ने घर लौटते मजदूरों को पानी पिलाया। हमें यह हमेशा याद रखने की जरूरत है कि मानवता से जुड़ी कोई भी कोशिश छोटा या बड़ा नहीं होता है।

कुछ ऐसी ही एक कहानी है राजस्थान (Rajasthan) की राजधानी जयपुर के रहने वाले अजय अग्रवाल की, जहाँ वह मानवता के प्रति अपने समर्पण के कारण लोगों का दिल जीत रहे हैं। 50 वर्षीय अजय, एक दवाई दुकान चलाते हैं और उन्होंने अपने कंधे पर घर-घर तक दवाईयां पहुंचाने का जिम्मा उठाया है। वे दिन के 12 घंटे अपनी फार्मेसी की दुकान खुली रखते हैं, ताकि किसी भी ग्राहक को कोई परेशानी न हो।

इस विषय में, अजय अग्रवाल बताते हैं कि उनके पास नियमित ग्राहकों की अच्छी संख्या है, जिनमें बुजुर्ग सबसे अधिक हैं। वे अपने इलाके में एक विश्वसनीय दवा विक्रेता हैं, जिसके कारण हाइपरटेंशन, डायबिटीज, किडनी, हार्ट समेत कई गंभीर बीमारियों के मरीज उनकी दुकान के उपर निर्भर हैं। ऐसे स्थिति में, मैं उन्हें चिन्ता में नहीं छोड़ सकता हूँ। यदि उन्हें समय पर दवाई नहीं मिली तो उनकी परेशानी बढ़ सकती है। जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों में नियमित रूप से दवा का सेवन न करना काफी घातक साबित हो सकता है। 

जयपुर में अजय अग्रवाल की दुकान, जवाहर नगर में सवाई मान सिंह हॉस्पिटल के नजदीक स्थित है। वे सुबह 7 बजे से लेकर रात में 10 बजे तक अपनी दुकान खुली रखते हैं, जबकि आपात स्थिति में वह लोगों के लिए 24 घंटे उपलब्ध होते हैं।

अजय बताते हैं कि उनके पास पहले 13 लोग काम करते थे, लेकिन अभी सिर्फ छह लोग हैं। लॉकडाउन के कारण बाकी लोगों को अपने गांव जाना पड़ा। संकट की इस घड़ी में संसाधनों की कमी हो रही है और जिम्मेदारियाँ बढ़ रही है।

यही नहीं, पहले भी अजय ने हजारों घर लौटते मजदूरों को मास्क और सेनेटाइजर बांटा। इन्होंने दुकान से हो कर गुजरते जरूरतमंदों को पानी की बोतलें, पेनकिलर और छोटे बच्चों के लिए खाने की भी व्यवस्था की।

बात दें कि अजय अग्रवाल दवाई दुकान यूनियन के हेड भी हैं और सभी दुकान मालिकों के साथ मिलकर वह निराश्रय और बेसहारा लोगों को खाना खिलाने के मुहिम पर भी हैं।

दुकान, अस्पताल को करीब होने के कारण अजय अग्रवाल कोरोना वायरस से बाक़ियों के मुकाबले अधिक खतरे में भी हैं। जिसके बार में वह कहते हैं कि हॉस्पिटल के निकट दुकान होने के चलते मैं अधिक खतरे में हूँ। मेरी पत्नी मुझे दिन में कई बार फोन करके हाथ धोने और मास्क बदलने के लिए याद दिलाती है। मुझे हमेशा सर्तक रहने की जरूरत है। मैं घर जाने के बाद सबसे पहले नहाता हूँ, उसके बाद ही कोई काम करता हूँ।

अतः विपदा के इस घड़ी में हमें विश्वास रखना चाहिए कि अपने परिवार से पहले अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देने वाले अजय अग्रवाल जैसे योद्धाओं की वजह से हम जल्द ही कोरोना महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सफल होंगे।

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