विकास एक व्यापक स्वीकृति है! इस स्वीकृति से हमें मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार के विकासीय गुणों का बोध होता है! वास्तव में, जीवन के आरंभ से अंत के बीच होने वाले मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक परिवर्तन को ही तो हम विकास कहते हैं! बच्चों के मानसिक विकास (Child Development) का तात्पर्य संज्ञानात्मक योग्यताओं के विकास से है! संज्ञान का तात्पर्य ऐसे मानसिक व्यवहारों से है, जिनका स्वरूप अमूर्त होता है! जिसके अंतर्गत सूझ, प्रत्याशा, विश्वास, अभिप्राय, समस्या समाधान, निर्णय लेने की क्षमता जैसी चीजें शामिल होती हैं!

शिशुओं के मानसिक विकास (Child Development) की अवस्थाएँ

सहज क्रिया की अवस्था

इस अवस्था की अवधि जन्म से एक वर्ष तक होती है! इस दौरान शिशु में सहज क्रिया की प्रधानता  होती है! सहज क्रियाओं का तात्पर्य है; सुषुम्ना द्वारा संचालित होने वाले कार्य! छींकना, चूसना, पलक उठानागिराना, पुतली का खुलनासिकुड़ना आदि सहज क्रिया के उदाहरण हैं!

ऐच्छिक क्रियाओं की अवस्था

इस अवस्था की शुरूआत 16-17 माह तक माना जाता है! इस आयु में बच्चों का मस्तिष्क काफी अधिक परिपक्व हो जाता है! परिणामत: बच्चे ऐच्छिक क्रियाओं को करने में सक्षम हो जाते हैं!

जैसेमाता को देख कर खुश होना, उसकी ओर देखना, अजनबी की ओर नहीं देखना, अजनबी को देख कर रोना, आदि!

उद्देश्यपूर्ण क्रिया की अवस्था

इस अवस्था की शुरुआत लगभग दो वर्ष की आयु से होती है! इस अवस्था में उद्देश्यपूर्ण कार्यों की प्रधानता होती है! खिलौना पकड़ना, खाने की सामग्री को पकड़ना, अजनबी को देख कर दूर हटना, आदि उद्देश्यपूर्ण कार्यों के उदाहरण हैं!

बढ़ती उम्र के साथ उद्देश्यपूर्ण कार्यों की विविधता और जटिलता बढ़ती जाती है, और सामान्यत: 18-19 वर्ष की उम्र तक पहुँचतेपहुँचते बच्चों में लगभग सभी मानसिक योग्यताएँ विकसित हो जाती है! इस विकास क्रम में पर्यावरणीय, सामाजिक, सांस्कृतिक भिन्नताओं के परिणामस्वरूप वैयक्तिक भिन्नतायें हो सकती हैं!

मानसिक विकास (Child Development) को प्रभावित करने वाले कारक

मानसिक स्वास्थ्य का निर्माण करने में बहुत सारे आंतरिक तथा बाह्य कारकों का योगदान होता है। कुछ प्रमुख कारकों का उल्लेख निम्नलिखित है

घरेलू वातावरण

अभिभावकों का व्यवहार, आर्थिक तंगी, अभिभावकों के अपेक्षाओं का बोझ, घर का अनुशासन, परिवार में तनाव इत्यादि बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं!

स्कूल का प्रभाव

स्कूल का वातावरण, अध्यापक का व्यवहार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देना, परीक्षण प्रणाली, और अनुचित पाठ्यक्रम इत्यादि विद्यालयी घटक बच्चे के मानसिकता को खराब करने के अहम कारक हैं!

सामाजिक प्रभाव

मनुष्य जाति, समाज में प्रचलित मूल्यों, आदर्शों, रीतिरिवाजों और मान्यताओं के बीच अपना विकास करता है, एवं समाज द्वारा स्थापित मूल्यों के अनुसार उसे व्यवहार करना पड़ता है! आन्तरिक तनाव, असुरक्षा व् स्वतन्त्रता का अभाव इत्यादि ऐसे सामाजिक कारक हैं जो बच्चों के मानसिक विकास सम्बंधित सकारात्मक और नकारात्मक दिशा को तय करते हैं!

Child Development

शिशुओं के मानसिक विकास में सुधार करने के तरीके

  • बच्चों के मानसिक विकास के लिये उसे ऐसे वातावरण में रखना चाहिये जैसा उसके लिए अनुकूल हो! उससे ज्ञान वर्धक बातें करनी चाहिए!
  • “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और मस्तिष्क होता है!” इस सिद्धान्त के अनुसार उसे केवल उन्हीं चीजों को खिलाई जानी चाहिये जो उसके शरीर, मन और मस्तिष्क के अनुकूल हों। जिससे बच्चों का शरीर और मन, सबल और बुद्धि प्रखर बने!
  • स्कूल भेजने से पूर्व बच्चे को साल-दो साल तक घर पर पढ़ा लेना चाहिए, जिससे कि शिक्षा के अनुकूल उसका बौद्धिक आधार तैयार हो जाए!
  • बच्चों को अधिक से अधिक प्रसन्न और शुद्ध वातावरण में रखने का प्रयास करना चाहिए ना कि उन पर इतना कठोर नियंत्रण स्थापित करना चाहिए कि वे मुरदा-मन हो जाएं, और ना ही इतनी छूट देनी चाहिए कि वे उच्छृंखल हो जाएं!
  • उन्हें भय से मुक्त करने के लिये साहस की कथाएं सुनाई जानी चाहिए और उदाहरण देने चाहिए! उन्हें किसी बात से सावधान तो करना चाहिए लेकिन भयभीत नहीं! धीरे-धीरे कठिन कामों का अभ्यस्त बनाना चाहिए! काम बिगड़ जाने पर उनका उपहास न करके उसके सुधार की शिक्षा देनी चाहिये और समुचित सराहना से प्रोत्साहित करना चाहिए!
  • उनके सामने क्रोध, लोभ, स्वार्थ और असद्भावनाओं की परिस्थितियाँ नहीं आने देना चाहिए! उन्हें अच्छी बातों के लिये प्रोत्साहित तथा बुरी बातों के लिये हतोत्साहित करना चाहिए! उनके सामने कभी भी ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए जिससे उनके मन पर कोई नकारात्मक असर पड़े!
  • उन्हें अपने आस-पास घटित हो रही घटनाओं को समझने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्ररित करना चाहिए!
  • उन्हें सृजनात्मक कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे कि वो समाज से जुड़ सकें! 
  • उन्हें खेलों के प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए, चाहे वो इनडोर हो या आउटडोर!
  • उनसे नियमित रूप से संवाद स्थापित करना चाहिए जिससे कि वो अपनी समस्याओं और अपेक्षाओं को आपसे साझा कर सकें!
  • उन्हें संगीत के प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे उन्हें अपने तनावों को दूर करने में मदद मिले!
  • उन्हें अनुशासनात्मक और व्यवहारिक ज्ञान देना चाहिए!

अभिभावकों को दूसरों के प्रति दयालुता का भाव दिखाना चाहिए जिससे कि बच्चों को एक सकारात्मक संदेश मिले!

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